श्रीरामचरितमानसके दोहेका अनुप्रास अलंकारयुक्त गद्यानुवाद (दिनदासमकृत) १:
दोहा :
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान ।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान ।।
अनुवाद :
रघुनायक श्रीरामके गुणसमूह अपने गायकको सकल सुमंगलोंका दायक (देनेवाला) है । सुनने लायक इन गुणसमुहोंको सादर सुननेवाले भी यकायक भवसागरको तर लेते हैं; ऊन्हें किसी जलयानके सहायक होने की भी अपेक्षा नही रहती !
।। श्रीसीतारामचरणार्पणमस्तु ।।
विचीत्र भाव:
वे बिना तर हुए ही (भवसागर) तर जाते हैं !